Monday, 27 February 2023

Isha Upanishad

Isha Upanishad -  ईषा उपनिषद

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते । 
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
पूर्णंम् अद: पूर्णंम् इदं पूर्णात् पूर्णंम् उदच्यते|
पूर्णस्य पूर्ण-मादाय पूर्णंम् एवं वशिष्यते||

ओम्! --  यह विश्व अविभाज्य एक है, पूर्ण है, दोष रहित है, कोख जैसा है। इसका मूल गुण नये को जन्म देना और उसका पोषण करना है।  नाश होना, नष्ट होना, मृत्यु को प्राप्त होना इस प्रक्रिया का अंग है, प्रासंगिक घटना है। इस कारण वश पूर्णता अनादि काल से, अनादि काल तक पूर्ण की पूर्ण रहती है। इस वजह से इस पूर्ण को समझने के लिये मानवता ने ईश्वर, देव, परमात्मा ऐसे शब्दों का उपयोग किया है। इस विचार को ध्यान में रखते हुए अब यह सरल अर्थ : यह पूर्ण है, वह पूर्ण है। उस पूर्ण से इस पूर्ण की उत्पत्ती होने पर वह पूर्ण, शेष पूर्ण रहता है। - ओम्! शांति! शांति! शांति!

Om!  -- This universe is one indivisible, complete, flawless, womb-like whole.  Its basic quality is to give birth to the new and nurture it.  Destruction and death is a part of this process, a related event.  For this reason, the perfection of completeness remains complete – a whole - from time immemorial, to time immemorial.  It is for this reason that words such as Ishwar, Dev, God,  Parmatma are used to understand this Absolute.  Keeping this idea in mind a straight meaning of the invocation is : This is whole, that is whole. This whole having been created from that whole, the whole remains intact, complete..  - Om!  Peace, Peace, Peace. 

2 comments:

  1. Need to read repeatedly to understand. John

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  2. Yes. True. The more times we read the deeper we can deliver.

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